चाणक्य नीति के 13वें अध्यया के 15वें श्लोक में बताया हे ऐसी आदते कितनी भी महेनत कर ले कभी सुखी नहीं होते

चाणक्य ने अपने पहले श्लोक में बताया हे की व्यक्ति तो सबसे पहले अपने मन को नियत्रित करना आना चाहिए क्यों की जो आपने मन को काबू में नहीं रख सकता वो किसी भी काम को ठीक से नहीं कर पाता हे चाहे वो कितनी भी महेनत कर ले

श्लोक में आगे बताते हुए चाणक्य कहते हे की ऐसे लोग जब समाज में अपना स्थान नहीं बना पाते तब ऐसे लोग बाकि लोगो की ईर्षा करते हे और दुसरो ईर्षा उनको कभी खुश नहीं रहने देती है इसलिए दुसरो की ईर्षा भी नहीं करनी चाहिए

जिसका मन आपने काबू में नहीं हे वो समाज में अपना स्थान न बनाने के कारन दूसरे सफल व्यक्ति की ईर्षा करता है और वो अकेला ही रहता है और उसको लगता हे की साडी दुनिया उसके खिलाफ है और वो हमेशा दुखी ही रहता है

जिंदगी में सफल बनने के लिए करे यह काम जरूर करे की हमेशा आप आपने काम में ध्यान एकत्रित करे और उधर इदर की बातो से कोई ध्यान न रखे

और अपने काम में ध्यान लगा के काम करेंगे तो जरूर आपको सफलता मिलेगी और समाज में अच्छा स्थान होने की वजह से आपको दुसरो की ईर्षा भी नहीं होगी

यदि कोई व्यक्ति इस तरह की आदतों से दूरी बनाए रखता है, तो उसे दूरस्थ सफलता जल्दी मिलती है क्योंकि वह उलझनों से दूर रहकर अपने काम में फोकस रखता है।

 इसलिए, सबसे पहले अपने आप को शांत रखना बेहद जरूरी होता है, और उसके बाद जीवन में अनुशासन बनाये रखना है।

ये आदतें अपनाने से जीवन में अधिक सफलता प्राप्त की जा सकती है।

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